Bhilai News-रिसाली सेक्टर दशहरा मैदान में आयोजित दिव्य अाध्यात्मिक प्रवचन का समापन…वेदों शास्त्रों में भगवद्प्राप्ति के 3 मार्गों को प्रशस्त किया गया है कर्ममार्ग, ज्ञानमार्ग और भक्तिमार्ग… इसमें से भक्तिमार्ग ही सर्वसुगम, सर्वसाध्य एवं सर्वश्रेष्ठ मार्ग- सुश्री धामेश्वरी देवी
भिलाई। बडा दशहरा मैदान रिसाली सेक्टर में चल रही दिव्य आध्यात्मिक प्रवचन श्रृंखला के अंतिम दिवस जगद्गुरु कृपालु जी महाराज की प्रमुख प्रचारिका सुश्री धामेश्वरी देवी जी ने बताया कि वेदों शास्त्रों में भगवद्प्राप्ति के 3 मार्गों को प्रशस्त किया गया है कर्ममार्ग, ज्ञानमार्ग और भक्तिमार्ग। कर्म मार्ग का विश्लेषण करते हुए उन्होंने कहा कि वेदों में अनेक कर्मकांडों का वर्णन मिलता है पूजा-पाठ, यज्ञ आदि, लेकिन वेदों में कर्मकांड की घोर निंदा भी की गई है। इसका कारण यह बताया कि कर्मकांड से स्वर्ग की प्राप्ति होती है लेकिन स्वर्ग भी क्षणभंगुर है मायिक है। अतः कर्मकांड करना घोर मूर्खता है कुछ लोग यज्ञ आदि करते हैं लेकिन वेदों में यज्ञ के लिए बड़े कड़े-कड़े नियम बताए गए हैं सही स्थान, सही समय, सही तरीके से कमाया धन, उससे एकत्रित हवन सामग्री और आहूति डालते समय, वेद मंत्रों का ठीक-ठीक उच्चारण आदि यदि नहीं होता तो यज्ञ करने वाले यजमान का नाश हो जाता है। इसके आगे ज्ञान मार्ग के बारे में बताया गया। वेदों में ज्ञान के दो प्रकार बताए गए – एक शाब्दिक ज्ञान और दूसरा अनुभवात्मक ज्ञान। किसी भी विषय का शाब्दिक ज्ञान से, लेकिन साधना द्वारा उसका अनुभव ना हुआ हो तो वह कोरी कल्पना ही समझिये। यह ज्ञान दो क्षेत्रों से संबंधित होता है एक माया का क्षेत्र और एक मायतीत ईश्वर का क्षेत्र। जो ज्ञानी होते हैं उन्हें किसी भी विषय का शाब्दिक ज्ञान होता है, इस आधार पर वें प्रवचन में बड़ी-बड़ी बातें बताते हैं, लेकिन अनुभवात्मक साधना के अभाव में उनके इस ज्ञान का कोई विशेष प्रभाव नहीं होता। वेदों में यह भी कहा गया है कि ज्ञानी व्यक्ति का पतन हो जाता है। वह ज्ञान अज्ञान है जिसमें ईश्वर प्रेम ना हो अर्थात कर्म स्वर्ग देकर समाप्त हो जाता है और ज्ञान से मोक्ष मिलता है यह भी निंदनीय है।
भगवद्प्राप्ति के तीनों मार्गों में केवल भक्ति मार्ग ही सर्वसुगम, सर्वसाध्य एवं सर्वश्रेष्ठ मार्ग है। हमारे वेदों में भक्ति से युक्त कर्म धर्म की प्रशंसा की गई है और भक्ति से रहित कर्म धर्म निंदनीय है। गीता में कहा गया है कि जो अनन्य भाव से निरंतर मेरी भक्ति करता है, मैं उसका योगक्षेम वहन करता हूं। भक्ति सर्वश्रेष्ठ है क्योंकि भक्ति करने से अंतःकरण शुद्ध होता है। अंतःकरण शुद्धि पर गुरुद्वारा दिव्य इंद्रिय मन बुद्धि प्राप्त होते हैं तभी भगवान का दर्शन उनका प्रेम उनकी सेवा मिलती है। भगवद्प्राप्ति के बाद भी भक्ति बनी रहती है और यह भक्ति उत्तरोत्तर बढ़ती जाती है। इस प्रकार भक्ति अजर अमर है।
प्रवचन का समापन श्री राधा कृष्ण भगवान की एवं जगद्गुरु कृपालु जी महाराज की भव्य आरती के साथ हुआ।