Bhilai News- निकाय चुनाव के आरक्षण में अन्य पिछड़ा वर्ग के साथ छलावा- अली हुसैन सिद्दीकी
आरटीआई विभाग के जिला अध्यक्ष अली हुसैन सिद्दीकी ने बताया कि छत्तीसगढ़ में नगरीय निकाय और पंचायत का चुनाव होना है, नगरीय निकाय चुनाव और त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव के लिए सरकार की तरफ से आरक्षण को मंजूरी दी गई थी,इसके तहत साय कैबिनेट ने त्रि-स्तरीय पंचायत एवं नगरीय निकाय चुनावों में आरक्षण की सीमा को बढ़ाया था कहना गलत है,जिसमें अन्य पिछड़ा वर्ग का आरक्षण 50 फीसदी करने का फैसला किया गया यह बात भी गलत है,ओबीसी वर्ग का यह आरक्षण पहले 25 फीसदी था, 50 प्रतिशत ओबीसी वर्ग के लिए आरक्षित करने की सिफारिश अन्य पिछड़ा वर्ग कल्याण आयोग ने की थी,लेकिन आरक्षण के फैसले में वास्तव में क्या है जानिए?
अली हुसैन सिद्दीकी बताते हैं की आरक्षण के फैसले को लेकर कैबिनेट ने यह निर्णय लिया था कि जिन इलाकों में एससी एसटी वर्ग के लिए कुल आरक्षण 50 प्रतिशत या उससे अधिक है, वहां पर अन्य पिछड़ा वर्ग यानि की ओबीसी वर्ग का आरक्षण शून्य होगा, दूसरी तरफ जहां एससी और एसटी वर्ग का आरक्षण 50 फीसदी से कम है वहां पर एससी, एसटी और ओबीसी को मिलाकर अधिकतम 50 प्रतिशत आरक्षण करते हुए ओबीसी वर्ग का आरक्षण किया जाना है। आरक्षण का यह प्रावधान पार्षद पद के साथ-साथ जिला पंचायत अध्यक्ष, नगर निगम महापौर, नगर पालिका अध्यक्षों पर भी लागू होगा, इसको छत्तीसगढ़ नगरपालिक निगम (संशोधन) अध्यादेश, 2024 के तहत मंजूरी दी गई थी, 28 अक्टूबर 2024 को कैबिनेट की मीटिंग में इस पर मुहर लगी थी,इससे पहले सरकार ने ओबीसी वर्ग की गणना करवाई थी ताकि ओबीसी वर्ग को उनकी जनसंख्या के अनुपात में आरक्षण दिया जा सके, जिस प्रकार से एससी और एसटी वर्ग को उनकी जनसंख्या के अनुपात में आरक्षण दिया जाता है, लेकिन इतनी मेहनत अन्य पिछड़ा वर्ग कल्याण आयोग द्वारा करवाने के बाद भी ओबीसी वर्ग के लोगों को इसका फायदा कहीं मिलता हुआ नहीं दिखाई दे रहा है, ओबीसी वर्ग को 50 प्रतिशत आरक्षण देने की बात सिर्फ और सिर्फ छलावा एवं लॉलीपॉप था, पहले 25 प्रतिशत आरक्षण ओबीसी वर्ग को मिलता था,अब इस संशोधन अध्यादेश के कारण जहां पर एससी एसटी वर्ग का आरक्षण 50 प्रतिशत होगा वहां पर ओबीसी वर्ग को आरक्षण नहीं मिलेगा!
*हार के डर से महापौर/अध्यक्षों का प्रत्यक्ष चुनाव:-*
आरटीआई विभाग के जिला अध्यक्ष अली हुसैन सिद्दीकी ने सवाल उठाया है कि नगरीय निकायों में महापौर एवं अध्यक्षों के प्रत्यक्ष चुनाव करवाने पर भी बहुत सारे सवाल है जिसका जवाब बीजेपी की सरकार को देना चाहिए!
अगर महापौर /अध्यक्ष एक पार्टी का जीतता है और दूसरी पार्टी के पार्षद ज्यादा जीत कर आते हैं तब सामान्य सभा में कोई भी प्रस्ताव पास हो पाएगा क्या?
लोकसभा में बहुमत दल का नेता प्रधानमंत्री होता है,विधानसभा में बहुमत दल का नेता मुख्यमंत्री होता है, तो फिर नगरीय निकाय की स्थानीय सरकार में बहुमत दल के नेता को महापौर/ अध्यक्ष बनने का अधिकार क्यों नहीं?
सत्ता और सरकार चलाने के लिए बहुमत बहुत जरूरी होता है! बीजेपी का बस चले तो मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री का भी प्रत्यक्ष रूप से जनता के द्वारा चुनाव करवा दे!
लोकतंत्र में सांसद लोग अपना प्रधानमंत्री चुनते हैं, विधायक लोग अपना मुख्यमंत्री चुनते हैं,तो फिर पार्षद लोग अपना महापौर /अध्यक्ष क्यों नहीं चुन सकते हैं? पार्षदों के अधिकारों का हनन क्यों?
छत्तीसगढ़ नगरपालिक निगम अधिनियम 1956 की मूल धाराओं के तहत पहले महापौर और अध्यक्षों का चुनाव अप्रत्यक्ष रूप से ही होता था, पार्षदों को बहुमत के आधार पर अपना नेता चयन करने का अधिकार होता था, अप्रत्यक्ष रूप से चुनाव होने पर छत्तीसगढ़ में पिछली बार बीजेपी का एक भी महापौर नहीं जीता था,हार का डर सताया जा रहा था, इसलिए बीजेपी सरकार ने नियम अधिनियम में संशोधन किया है!