Bhilai News- महापुरुष सिद्धियों का चमत्कार नहीं दिखाया करता…चमत्कार को नमस्कार करना ठीक नहीं, अपितु चमत्कारियों को दूर से नमस्कार करना ठीक है, अन्यथा अपना लक्ष्य खो बैठोगे- सुश्री धामेश्वरी देवी

 Bhilai News- महापुरुष सिद्धियों का चमत्कार नहीं दिखाया करता…चमत्कार को नमस्कार करना ठीक नहीं, अपितु चमत्कारियों को दूर से नमस्कार करना ठीक है, अन्यथा अपना लक्ष्य खो बैठोगे- सुश्री धामेश्वरी देवी

भिलाई। जगद्गुरु श्री कृपालुजी महाराज की प्रमुख प्रचारिका सुश्री धामेश्वरी देवीजी द्वारा बडा दशहरा मैदान रिसाली सेक्टर भिलाई, में चल रही 11 दिवसीय आध्यात्मिक प्रवचन श्रृंखला के दसवें दिन बताया कि किसी महापुरुष को पहिचानने में एक बात का प्रमुख दृष्टिकोण रखना चाहिए कि किसी से सुनकर किसी को महापुरुष न मान स्वयं देखभाल कर लें, अपितु एवं समझकर उसे स्वीकार करना चाहिए।

महापुरुष के पहिचानने में निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए

किसी महापुरुष को पहिचानने में उसकी बहिरंग वेशभूषा को न देखना चाहिये। कोट पतलून में भी महापुरुष हो सकते हैं एवं रंगीन वस्त्रों में भी कालनेमि मिल सकते हैं। पुनः हमारे इतिहास से भी स्पष्ट है कि 90 प्रतिशत महापुरुष गृहस्थों में हुए हैं जिनके कपड़े रँगे नहीं थे।

एक बात का और दृष्टिकोण रखना चाहिये कि महापुरुष संसारी वस्तु नहीं दिया करता, यह गम्भीरतया विचारणीय है। महापुरुष क्या, भगवान् भी कर्म विधान के विपरीत किसी को संसार नहीं देते। उनके भी नियम हैं।

महापुरुष सिद्धियों का चमत्कार नहीं दिखाया करता। चमत्कार को नमस्कार करना ठीक नहीं, अपितु चमत्कारियों को दूर से नमस्कार करना ठीक है, अन्यथा अपना लक्ष्य खो बैठोगे।

महापुरुष मिथ्या आशीर्वाद नहीं देता एवं शाप भी नहीं देता। हाँ, इतना अवश्य है कि मंगलकामना सम्पूर्ण विश्व के लिये रहती है क्योंकि वह पूर्ण-काम हो चुका है। हरिदास सरीखे सन्त को गुण्डों ने इतना मारा कि वे खून से लथपथ हो गये, पुनः मरा हुआ समझ कर नदी में फेंक दिया किन्तु हरिदास ने भगवान् से यही प्रार्थना की कि ये बेचारे अज्ञानी हैं, इनका कोई अपराध नहीं अगर आप मेरी प्रार्थना स्वीकार कर सकें एवं मुझसे प्यार करते हों तो इन सब की बुद्धि शुद्ध कर दें। सोचिये, इतने आततायी के प्रति भी महापुरुष के ऐसे उद्गार हैं।

महापुरुषों को पहिचानने का प्रत्यक्ष प्रमाण यह है कि महापुरुष के दर्शन, सत्संगादि से ईश्वर में स्वाभाविक रूप से मन लगने लगता है। किन्तु, वह मन लगना सबका पृथक् पृथक् दर्जे का होता है। जैसे, चुम्बक लोहे को अवश्य खाँचता है किन्तु यदि लोहे में अन्य धातुओं का मिश्रण होता है तो देर में खींचता है। इसमें चुम्बक का दोष नहीं है अपितु लोहे में मिश्रण का दोष है। इसी प्रकार साधक का मन जितना निर्मल होगा, उतनी ही मात्रा में खिंच जायगा। यही कारण है कि इतिहास में महापुरुषों को देखकर एक व्यक्ति का मन तुरन्त खिंच गया, एक का देर से खिंचा, एवं एक व्यक्ति तो उन महापुरुषों को गाली ही देता रहा। किन्तु, यह ध्यान रहे कि गाली देने वाले का भी लाभ होता ही है क्योंकि जो उसने ईश्वरीय तत्त्व की बातें सुन ली हैं वह उसके पास जमा रहती हैं, समय आने पर अर्थात् वैराग्य होने पर वह सुना हुआ तत्त्व काम में आ जावेगा।

दूसरा प्रत्यक्ष लाभ यह होता है कि साधक की जो साधना-पथ की — क्रियात्मक गुत्थियाँ अर्थात् उलझनें होती हैं उन्हें वह सुलझा कर बोधगम्य करा देता है। अतएव संशयों को समाप्त करके सही साधना पथ पर चलाने का कार्य श्रोत्रिय-ब्रह्मनिष्ठ महापुरुष ही कर सकता है।

प्रवचन का अंत श्री राधा कृष्ण भगवान की आरती के साथ हुआ। प्रवचन श्रृंखला का आयोजन दिनांक दिनांक 20 दिसम्बर 2024 तक रोज शाम 6 से रात 8 बजे तक होगा।

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